
Movement of GenZ: देश के कई हिस्सों में युवा—विशेषकर जनरेशन-Z (आयु समूह अंदाज़न 18–30 वर्ष) के आंदोलनों ने सरकार के सामने एक ताकतवर राजनीतिक चेतावनी के तौर पर अपनी जगह बना ली है। लद्दाख और देहरादून से मिली रिपोर्टों में विरोध-प्रदर्शन दोनों जगहों पर बड़े पैमाने पर देखे गए। देहरादून में अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रैलियाँ और घेराबंदी हुई। जबकि लद्दाख में प्रदर्शन हिंसक घटनाओं में बदल गए।
Movement of GenZ: शांतिपूर्ण प्रदर्शन, आगजनी और झड़पों पर सरकार चिंतित
इंफोपोस्ट न्यूजडेस्क |(नई दिल्ली/लेह/देहरादून)
देहरादून। Movement of GenZ: स्थानीय युवाओं और छात्रों ने सड़कों पर व्यापक प्रदर्शन किया। ज्यादातर प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे और प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ नकल-रैकेट, बेरोजगारी और भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की माँग उठाई।
प्रदर्शनकारियों ने सीबीआई जांच और भर्ती प्रक्रियाओं की पारदर्शिता की माँग रखी। पुलिस ने कुछ स्थानों पर कड़ा रुख अपनाया और लाठी-चार्ज की सूचना भी मिली।
लद्दाख में माहौल तनावपूर्ण बन गया
लद्दाख (लेह)। लद्दाख में माहौल तनावपूर्ण बन गया। कुछ प्रदर्शन हिंसक हो गए। आगजनी, सरकारी दफ्तरों पर हमला और गाड़ियों में आग लगाने की घटनाएँ हुईं। इन घटनाओं में कई लोगों के घायल होने और कुछ हताहत होने की खबरें भी हैं।
स्थानीय नेतृत्व का कहना है कि इनमें 18–28 वर्ष के कई युवा शामिल थे। लेह के प्रमुख नागरिक-नेता और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए इसे “It’s a Gen Z revolution” करार दिया और कहा कि युवा बेरोज़गार हैं और उनका भरोसा व्यवस्था से उठ चुका है।
युवाओं की प्रमुख माँगें और वजहें
प्रदर्शनकारियों ने जो प्रमुख मुद्दे उठाए हैं, उनमें शामिल हैं: बढ़ती बेरोज़गारी। खासकर स्नातक और पोस्ट-ग्रेजुएट और तकनीकी योग्यताओं वाले युवाओं के लिए नौकरी की कमी। सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में कथित अनियमितताएँ और पेपर लीक्स। जिनके कारण युवा अवसरों से वंचित महसूस कर रहे हैं।
लद्दाख में राज्य का दर्जा (Statehood) और इलाके में लंबे समय से चली आ रही विकास और सुरक्षा की समस्याएँ। स्थानीय नेताओं का आरोप है कि पिछले वादों पर अमल नहीं हुआ। युवाओं का सामाजिक-आर्थिक मामले में हताश होना और सोशल मीडिया के जरिए तेज़ी से संगठित होना।जनरेशन-Z की डिजिटल संगठनीय क्षमता ने आंदोलनों को तीव्रता दी है।
प्रदर्शनकारियों के एक हिस्से का कहना है कि शांतिपूर्ण उपाय अपनाने के कई दौरों के बाद भी उनकी बात सरकार तक नहीं पहुँची। कई बार अनशन, पदयात्रा और जनहित याचिकाएँ विफल रहीं। और इसी निराशा ने संघर्ष का रूप लिया।
प्रशासन और सरकार की प्रतिक्रिया
स्थानीय प्रशासन ने स्थिति नियंत्रित करने के लिए विभिन्न जगहों पर सीमाएँ, उपाय और कुछ स्थानों पर पाबंदियाँ लागू कीं। कुछ रिपोर्टों में 163 (या 144 जैसी) आपात आदेशों का हवाला दिया जा रहा है। प्रशासन ने यह कदम शांति बनाए रखने और आगे की हिंसा रोकने के तर्क के साथ उठाए हैं। केन्द्र और राज्य स्तर पर भी चिंताएँ बढ़ी हुई हैं। सुरक्षा और गृह मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने स्थिति पर निगरानी बढ़ा दी है।
सरकार की तरफ़ से फिलहाल किसी एक संयुक्त बयान का इंतज़ार है। सरकार के अधिकारी सार्वजनिक स्तर पर यह कहते देखे गए कि अशांति के लिए कोई जगह नहीं है और शांतिपूर्ण संवाद ही समाधान है। वहीं कुछ अधिकारियों ने यह भी संकेत दिए हैं कि अगर हिंसा बढती है तो कड़ा कदम उठाया जाएगा।
क्या यह देश के लिए एलार्म बेल है?
विश्लेषकों का कहना है कि यदि युवा (विशेषकर जनरेशन-Z) का असंतोष बढ़ रहा है और उसकी मीडियाटाइज़्ड आवाज़ें नज़रअंदाज़ की जाती हैं, तो यह लंबी अवधि में राजनीतिक एवं सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। बेरोज़गारी, भरोसे की कमी और भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता का अभाव, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर नज़रअंदाज़ किया जाना देश के सामने दीर्घकालिक चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है।
लेकिन कई सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता भी यह पसंद करते हैं कि समस्या का समाधान हिंसा से न होकर संवाद, पारदर्शिता और ठोस नीतिगत कदमों के जरिए किया जाए। महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण आंदोलनों का हवाला देते हुए स्थानीय नेताओं ने हिंसा न करने की अपील भी की है। वहीं कुछ युवा नेताओं का कहना है कि जब आवाज़ें नहीं सुनीं जातीं, तो हताशा हिंसा की ओर धकेल देती है।
निष्कर्ष यानी आगे का रास्ता
Movement of GenZ: लद्दाख और देहरादून की घटनाएँ सरकार के लिए एक चेतावनी हैं। युवा पीढ़ी के मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी भर्ती प्रक्रियाओं, तत्काल रोज़गार नीतियों और संवाद के लिए मंच बनाने की आवश्यकता है। किसी भी आंदोलन या विरोध में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हिंसा न केवल लोगों की जान और माल का नुकसान करती है, बल्कि आंदोलन के मूल उद्देश्य को भी कमजोर कर देती है।